Sadhana Shahi

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महामानव संत रविदास (लेख-)25-Feb-2024

महामानव संत रविदास

सज्जन की जाति न होती, होता बस है ज्ञान। वो मूरख जो जाती हैं पूछे, ना करते हैं मान। हम सब ही ईश्वर के बंदे, मानव ही बस जात। मानवता को बस दिखलाएँ, तज दें जात-कुजात। परमुखापेक्षी एक पाप है, ना कर इसको इंसान। सोच- समझकर यदि किया तो, ना क्षमा करें भगवान। जो परवश हो करके जीता, ना कोई करता प्रीत। बर्ताव ऐसे हैं करते, मानो लिए हो जंग में जीत।

कभी-कभी हम मनुष्य को गाली के रूप में जानवर या पशु कहते हैं। तो हमें यहांँ यह जानना ज़रूरी है कि आख़िर पशुता है क्या? तो मेरे अनुसार वर्ण, लिंग, जाति, वर्ग,धर्म इत्यादि के आधार पर भेदभावपूर्ण व्यवहार करना, किसी को उपेक्षित करना, आहत करना शायद इसे ही पशुता कहते हैं।

यदि आज हम घूमकर अपने चारों ओर देखें तो पाएंँगे कि हमारे आस-पास गांँव, समाज, शहर में इस तरह के पशुत्व का बोलबाला है। ऐसे में धरा पर मानवीय सभ्यता का पुष्पित- पल्लवित होना आवश्यक हो गया है।

मानवीय सभ्यता की सुखद कल्पना और उस कल्पना को साकार रूप देने हेतु प्रयास करने वाले ही महामानव कहलाते हैं।

इस तरह की व्यवस्था करने वाले महामानवों में भगवान बुद्ध, महावीर जैन स्वामी, गुरु नानक देव, ईसा मसीह मोहम्मद साहब जैसे अवतारों का नाम अग्रणी है। ये वो अवतार हैं जो अपने आध्यात्मिक प्रयासों, सत्कर्मों, अहिंसा, करुणा के द्वारा एक विकसित, समुन्नत, व्यवस्थित समाज का निर्माण किये। जिसमें मनुष्य ही नहीं प्राणी मात्र स्वयं को सुरक्षित महसूस करें। काम, क्रोध, मद,लोभ जैसे विकारों का नाश हो। धर्म, दया, संतोष का हृदय में वास हो।

भारतीय समाज में जाति- धर्म मज़हब के भेद-भाव को नष्ट करने हेतु रामानुज आचार्य द्वारा स्थापित श्री संप्रदाय में स्वामी रामानंद ने सामाजिक समरसता को उदारता के साथ विस्तार दिए उन्होंने अस्पृश्यों को भी भक्ति व ज्ञान की शिक्षा- दीक्षा के लिए मुक्त हस्त से प्रयास किया स्वामी रामानंद के शिष्यों में रविदास, कबीर, धना, पीपा, अनंतानंद, सुखानंद, सुरेश्वरानंद, नरहरियानंद, योगानंद, भावानंद जैसे प्रभावी संत हुए। किंतु इन सभी संतो में संत रविदास एक अद्वितीय संत थे। आज उनके जयंती पर मैं अपने अल्प जानकारी के अनुसार उनके जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश डालने का प्रयास की हूँ।

संत शिरोमणि महामानव रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी में उत्तरप्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांँव में माता कर्मा देवी (कलसा) , पिता संतोख दास (रग्घु), दादा कालूराम जी, दादी श्रीमती लखपती जी के यहांँ हुआ था। इनके पत्नी का नाम श्रीमती लोनाजी और पुत्र का नाम श्री विजय दास जी है।

इन्होंने जाति, वर्ण,वर्ग,धर्म संपन्न वर्णवादी जनों की स्वार्थ पूर्ण षड्यंत्रकारी योजनाओं का खंडन किया। बालक रविदास उस समय के समाज में विद्यमान भेद-भाव को लेकर बड़े ही दुखी रहते थे। उनके अंदर बचपन से ही भगवद भाव विद्यमान था।

वे उस समय के चर्चित महात्मा रामानंद के सानिध्य में ज्ञान और ध्यान का शिक्षा- दीक्षा लिए। रामानंद के शिष्यों में संत रविदास और कबीर का नाम सर्वोपरि उल्लेखित है। संत रविदास के छवि को देखकर चित्तौड़ की रानी मीरा काशी में आकर संत रविदास से मुलाकात कीं तथा रविदास को चित्तौड़ आने का आग्रह कीं। उनके आग्रह को स्वीकार कर रविदास जी चित्तौड़ गये।

आडंबरहीन, सरल एवं सहज साधना को स्पष्ट रूप से समझने की अद्भुत कला रविदास जी में विद्यमान थी।

इन्होंने भक्ति तथा ज्ञान का अपने पदों के माध्यम से अद्भुत विश्लेषण भी किया। जो आज भी वाणी के रूप में जन-जन में देखा जा सकता है।

वे जहांँ जाते थे अपने आकर्षक व्यक्तित्व, विलक्षण प्रतिभा के कारण लोगों में आकर्षण के केंद्र बन जाते थे। उनके आध्यात्मिक प्रयास का ही परिणाम था कि शोषित एवं दीन- हीन समाज में मुक्ति बोध का संचार हुआ। इनके भक्ति एवं ज्ञान के लोक भाषा में भजनों का गायन गरीब झोपड़िया में भी सुनाई देने लगा। जो जन सामाजिक भेद-भाव के कारण कुंठित हो गए थे अब उन्मुक्त हो खुलने लगे। अब समाज में विद्यामान जड़ता समाप्त होने लगी। लोग एक दूसरे के सुख- दुख में सहभागी होने लगे।

संत रविदास की वाणी ज्ञान मार्ग एवं भक्ति मार्ग का अविरल गंगा प्रवाहित करती है।

उनके उपदेशों का प्रभाव समाज के अमीर- ग़रीब, उच्च- निम्न सभी वर्गों पर पड़ा। सभी जनों के हृदय में रविदास जी एक आदर्श संत के रूप में विद्यमान हैं। ऐसे ही महामानव के सत्प्रभाव से समाज पतन के गर्त में जाने से बच जाता है। तथा सामाजिक पतन के विकट समय से भारतीय समाज उभरता रहा है। इनके ज्ञान एवं सद्भाव युक्त प्रयासों का ही परिणाम है कि आज भी आध्यात्मिक की थाती हमारे देश के जनसाधारण के मध्य भी विद्यमान है। ऐसे महामानव, दिव्य संत के प्रति आज पूरा देश नतमस्तक है। और उन्मुक्त कंठ से- रैदास ने जन्म लिया है, अब ना कोई नीच है। दुष्कर्म को करने वाला, नीच वही जो कीच है। का गान गा रहा है

साधना शाही, वाराणसी

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7 Comments

kashish

27-Feb-2024 02:29 PM

Amazing

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RISHITA

26-Feb-2024 04:21 PM

Superb

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Mohammed urooj khan

26-Feb-2024 02:02 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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